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________________ देकर शासन की भव्य प्रभावना की। पूज्य श्री विद 11 के दिन डूगरपुर तरफ विहार की भावना रखते थे। परन्तु विद 10 दोपहर संघवी तरफ से नवाह म प्रकारी पूजा में स्पेशल आमंत्रण होने से उदयपुर से श्री संघ के अग्रगण्य 100-150 भाविक आये। उन सब लोगों ने पूजा के पश्चात पूज्य श्री के पास आकर चैत्री अोली के लिये उदयपुर पधारने की आग्रहभरी विनती की । पूज्य श्री ने कहा कि "महानुभावों! हमारे साधु आचार के अनुसार अब उदयपुर शहर में आना या ठहरना उचित नहीं । आप लोगों का धर्म प्रेम हमें जरूर खींचता है, किन्तु आचार निष्ठा साधुनों के लिये महत्व की चीज हैं" आदि-श्री संघ के अग्रगण्यों ने कहा कि-महाराज ! आप तो आचारनिष्ठ हैं ही ! आप तो सलंग सात चौमासे कारणवश हमारे श्री संघ के सौभाग्य से उदयपुर में किये, किन्तु आप तो जलकमलवत् निर्लेप रहे हैं, आप किसी से नाता जोड़ते ही नहीं। शासन के लाभार्थी विचरने वाले श्राप का पदार्पण हमारे श्री संघ के लाभ में ही रहा है। ___ अभी चौगान के मन्दिरजी की व्यवस्था डावाँडोल है। जिन मन्दिरों की अव्यवस्था न हो इसका ख्याल तो आपको भी करना जरूरी है। इसके लिये अभी एक चौमासे की और जरूरत है। किन्तु अभी तो हम आप श्री की निश्रा १६८
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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