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होगा | आपको अधिक लिखना पड़े ऐसा नहीं है ।
X ता. 13 वी अक्टोबर 1886 ली. ह. स्वयं
X ऊपर के दोनों पत्र अहमदाबाद के अग्रगण्य प्रतिष्ठित धर्मं धुरंधर, शासनानुरागी तथा श्री संघ के प्रमुख सेठिया के द्वारा खुद के हाथ से लिखे हुए हैं। उसके अन्दर का ब्यौरा भी अद्भुत है । इन दोनों पर से पूज्य श्री झवेर सागर जी म. के अप्रतिम गौरववंत व्यक्तित्व की छाया कितनी व्यापक होगी ? वह सूत्र पुरुषों को सहज ही समझ में आ सके ऐसा है । गुजरात में कोई विकट प्रश्न- परिस्थितियां आवे तो अहमदाबाद के धुरंधर सेठिया लोग ठेठ मेवाड़ में बिराजमान पूज्य श्री के उपराउपरी दो पत्रों द्वारा आदरपूर्वक याद करते हैं ।
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यह वस्तु पूज्य श्री के अपूर्व व्यक्तित्व की वाचकों के मन पर भी छाप डालती है । ये दोनों पत्र ऊपर से पूज्य श्री को यों अनुभव हुआ कि तरणतारण हार श्री सिद्धाचलमहातीर्थ की रक्षा के सम्बन्ध में जैन श्री संघ द्वारा उठाया गया भगीरथ कार्य में उदयपुर श्री संघ का सहकार दिलवाने का मेरा कर्तव्य है । अतः शासन के काम के सम्बन्ध में अच्छा लगे या न लगे, मन माने या न माने पूज्य श्री को उदयपुर चातुर्मास की इच्छा करनी पड़ी तथा वै. सु. 3 के व्याख्यान में श्री सघ के द्वारा की गयी आग्रह भरी विनती
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