________________
जाहिर में बेठकर बातों का जवाब देने का क्षेत्र खुल्ला ही है । कौन रोकेगा ।" कह कर बात को ढीली रख दी । स्थानक - वासी संतों ने भी "बड़ी टक्कर लेने जैसा नहीं अन्यथा शास्त्रार्थ के खुले कदमों से उलटा अपने स्थानकवासी वर्ग में से कितने ही कुटम्बी पहले की तरह छुट्टे हो जायेंगे” यों धार कर अधिक खुले में बोलना ही बंद कर दिया। पहले से ही पूज्य श्री की विद्वता, सचोट तर्क-शक्ति आदि का गजब प्रभाव पड़ गया था । श्री संघ में पूरे चातुर्मास के बीच शान्ति रही ।
इस तरह प्रार्य समाजियों ने हरिद्वार से विदेहानंद जी नाम के धुरंधर सन्यासी विद्वान को श्रावण भाद्रपद दो माह के लिये बुला लाये । उन्होंने भी श्रावण विद में प्रवचन में मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में तथा जैन धर्म के सम्बन्ध में प्रक्षेपात्मक प्रचार प्रारम्भ किया । पूज्य श्री ने श्री संघ के प्रमुख व्यक्तियों के साथ सनातनियों के प्रमुख व्यक्तियों से सम्पर्क साधकर सम्पूर्ण उदयपुर के हिन्दुओं के बल को एकत्रित कर सबके अग्रगण्यों को उन सचोट तर्कों तथा वेद-स्मृतियों के उद्धरण टोक कर आर्य समाजी-स्वामी जी के पास भेजे ।
प्रारम्भ में तो स्वामी जी ने
प्रसत- प्रलापों से जैन धर्म
गिराने की चेष्टा की ।
तथा सनातन वैदिक धर्म को नीचे पूज्य श्री के द्वारा समझाये गये तथा नोट कराये गये मुद्दानों
१८५