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करें- " स्थानकवासी संतों के अग्रगण्य श्री किशनचंद जी की धारणा थी कि - " संवेगी साधुत्रों में वहां कितनी ताकत होगी कि हमारे सामने शास्त्रार्थ करें " यों घार कर मात्र फुफकार बताने के लिये जाहिर में चेलेन्ज किया परन्तु यह तो बराबरी का खेल आ पड़ा अतः बात को दूसरे तरीके से ढाल कर बोले कि
"भैया ! शास्त्रार्थं करना हो तो हमारी ना नहीं । किन्तु क्या कभी इन बातों का निर्णय आज तक हुआ है क्या ? वाद-विवाद में समय खराब करना ठीक नहीं, फिर भी यदि उनकी इच्छा है हम ही आपस में एक दूसरे की बात समझ लेगे कह कर शास्त्रार्थ की बात ढोली रखी । स्थानकवासी श्रावकों ने भी कहा कि "महाराज ! इस बतंगड बाजी में क्या कल्याण है । आप अपनी बात सुनायोगे । वे अपनी बात सुनायेगे । किन्तु असलियत में क्या है ? वह तो ज्ञानी जाने ।
पहले भी तो वहां इन संवेगी महाराज से वाद-विवाद हुआ था । "यों कह कर शास्त्रार्थ की बात पर शीतल जल उडेला । अन्ततः अपने श्री संघ के प्रमुख ने जैसी आपकी इच्छा "यों कहकर खड़े हो गये । पूज्य श्री के पास आकर सारी बात कही । पूज्य श्री ने कहा कि-" आप को अब कोई बात चला करके नही कहनी है अब शायद वे मूर्तिपूजा की बात जोरदार नहीं छेडेगे । और यदि छेडेगे तो अपने लिये
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