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________________ साधुनों ने उदयपुर में पदार्पण किया। आते ही- “एकेन्द्रो आगे पचेन्द्री नाचे" आदि क्षुद्र टिप्पणियों तथा "अहिंसा परमों धर्म " इस वैदिक धर्म को आगे करके "जहाँ हिंसा वहाँ धर्म नहीं" आदि के सूत्र के साथ अपने भक्त श्रावकों को मत-संप्रदाय को चार दिवाल के बीच में रोक रखने, मुर्तिपूजा के सम्बन्ध में शास्त्र पाठों के नाम से ज्यों त्यौं बातें प्रसार करना प्रारंभ किया । इतने में पूज्य श्री ने एक के बाद एक मुद्दे को व्यवस्थित रीति से निस्तारण सहित शास्त्र, सिद्धान्त तक तथा व्यवहार चारों परीक्षाओं में से गुजार कर श्रोताओं को सचोट यह जमा दिया “प्रभु-पूजा यह गृहस्थ का कर्तव्य है ही।" और "अहिंसा परमोधर्म:" सूत्र वैदिकी के मिथ्यात्व में कारण के उदय का प्रतीक है । इस बात को स्पष्ट रीति से समझा कर जिन शासन में तो “आधायें धम्मो "केवलपण्णत्तो धम्मों" आदि सनातन सूत्रों द्वारा “जिनाज्ञा परमाधर्म:" की महत्ता प्रकट की । इसी प्रकार “जहां हिंसा वहां धर्म नहीं' सूत्र के खोखलेपन को हिंसा के स्वरूप हेतु अनुबंध नीन भेदों को दर्शाकरपूजा के अतिरिक्त भी सामयिक-प्रतिक्रमण दानदया आदि प्रत्येक प्रवृति में हिंसा तो है ही। तो फिर धर्म कहां? आदि तर्को से "जहां प्राज्ञा वहां धर्म यह सनातन सूत्र पूज्य श्री ने प्रकट किया । १८२
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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