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________________ के केवल ज्ञान कल्याणक के दिन उदयपुर को प्रस्थान रूप में पुस्तक देकर वे. सु. 11 के सायंकाल विहार करने का विचार प्रकट किया। पूज्य श्री ने कपड़वंज से वै. सु. 11 सन्ध्या उदयपुर की तरफ विहार किया। वै. वि. 3 के दिन लूणावाडा पधारे । वहाँ के श्री संघ के देव द्रव्य सम्बन्धी लेखा पत्रक ठीक कराये। थोड़ा काम बाकी रहा परन्तु उदयपुर पहुंचने की उतावली में चार पांच श्रावकों को वह काम सोंपा। और भी वहां दहेरासर का काम भी अटक गया था उसे भी चालू कराने का श्रावकों को समझाकर उदयपुर तरफ विहार किया। जेठ सु. 10 डूंगरपुर पहुंचे यहां उदयपुर का श्री संघ वंदना करने आया । जेठ 13 केशरियाजो पधारे यहां चतुर्दशी की पक्षीय आराधना उदयपुर के अनेक श्रावकों के साथ कर विद 1 प्रातः उदयपुर तरफ विहार किया। जेठ विद 5 प्रातः धूमधाम से उदयपुर के श्री संघ ने पूज्य श्री का नगर-प्रवेश कराया। पूज्य श्री ने उदयपुर की जनता के धार्मिक-मिजाज तथा वातावरण का चिरपरिचय होने से छेडती करने का प्रयत्न अपनाने के बजाय प्रश्न जो सामने आवे उसका जोरदार निराकरण करने की नीति रखकर जोरदार उपदेश प्रारंभ किया। थोड़े दिनों में ही स्थानकवासी के बड़े धुरंधर गिने जानेवाले विद्धान म. श्री किशन चंद जी तथा चंपालाल जी आदि १८१
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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