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________________ तब तक आप यहीं बिराजना" यो विनती कर अहमदाबाद तरफ रवाना हुआ। अहमदाबाद जाकर पूज्य गच्छाधिपति को सारी बात कही । सात चातुर्मास में धर्म की कितनी तथा शासन की जो प्रभावना हुई उसे विस्तारपूर्वक श्री संघ के अग्रगण्यों ने जतलाया । इस वर्ष स्थानकवासियों तथा आर्यसमाजियों को टक्कर के सामने टिके रहने के लिए पूज्य श्री को चातुर्मासाथ भेजने का खूब आग्रह किया । वे आपको आज्ञा शिरोधार्य करेगे उस आशय से लिखित पत्र भी पेश किया । पू गच्छाधिपति श्री को पूज्य श्री के साथ गंभीर विचारविमर्श के लिये उनकी रूबरू आवश्यकता थी। परन्तु गर्मी के दिन, अल्प समय, अतः अहमदाबाद सामने बुलाने की बात को गौण करके बात को पत्र द्धारा किंवा व्यक्ति द्वारा पूरा कर देने का विचार करके शासन की रक्षा की बात को अधिक महत्व भरी मानकर पू. गच्छाधिपति श्री ने उदयपुर वालों की विनती मान्य रखकर "क्षेत्र स्पर्शना बलीयसी' न्याय को आगे करके पूज्य श्री को उदयपुर तरफ विहार करने की सूचना दी। उदयपुर का श्रीसंघ प्राज्ञा पत्र लेकर वापिस कपड़वंज आया, पूज्य श्री को पत्र दिया। पत्र पढ़ कर पूज्य श्री ने भी समस्त मानसिक भावनाओं को गौण करके पूज्य श्री की आज्ञा शिरोधार्य करके वै. सु. दसमी को प्रभु महावीर स्वामी १८०
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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