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दृष्टि में प्राय सो लिखना । अब विशेष बात लिखने की नहीं है । क्योंकि ग्रामने- सामने विचार होगा सो जानना । मिति सं. 1942 का वैसाख सुद 1 गुरुवार लि. आपका सेवक गोकुल जी की वंदना
इसमें रतलाम के सेठिया पालीताणा से अहमदाबाद आने को है सो उस प्रसंग में पूज्य श्री को जरूरी हो तो पू. गच्छाधिपति श्री के अन्तरग श्रावक ने पूज्य श्री को कपड़वंज से आने का इस पत्र में जतलाया है । परन्तु - " साधु जीवन में क्षेत्र स्पर्शना प्रबल होती है, इससे पूज्य श्री ने इस पत्र के आधार पर तथा स्वयम् को भी पूज्य गच्छाधिपति की वंदना करने की, मिलने की अधिक उत्कठा है ही । बारह वर्ष की अवधि व्यतीत हो गयी। इससे पू. गच्छाधिपति याने की शुभ संकल्प से वै सु. षष्ठी के दिन कपड़वंज से अहमदाबाद तरफ विहार का विचार कर घोषणा भी कर दी ।
परन्तु भावी योग से दीपविजय जी की तबीयत बिगड़ जाने से सु. 6 का विहार बंद रहा। गर्मी का उपद्रव तनिक अधिक होने से उपचार लेने में विहार की बात एक तरफ रह गई । इस बीच में व सु. 10 के दिन उदयपुर से प्राठदस प्रमुख श्रावक आये । पूज्य श्री को विनती की कि - "बावजीसा । हमें आप सुना रखकर आ गये। वहां धणी बिना खेत सूना" की दशा हो रही है । बापजी । हम पर दया करो ।
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