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________________ खेत तो भले बिगड़ा । क्या करें? आप इधर पधारे और वे मिथ्यातत्व लोग खेत को रोंद रहे हैं। बावजी दया करो। उधर पवारो।" आदि खूब प्राग्रह भरो विनती की। पूज्य श्री ने कहा कि “आपको बात सच्ची है। परन्तु क्या हम हमेशा वहां बैठे रहें। यह तो संभव नहीं। बिना इच्छा के भी आग्रहवश कारण सर सात चौमासे तो किये। साधुपने की मर्यादा तो ख्याल रखना चाहिये ।' आदि श्री संघ के अगुवानों ने कहा कि- “अापकी बात सच्ची हम लोग तो स्वार्थवश आपको ही कहे न, फायदा तो शासन को ही होगा और बीच-बीच में आप पधार गये। बाहर के गांवों में विचरने को रोका नहीं? बावजी सा। दया करो अब । हमारी तो शान बिगड़ जायगी। शासन की जो शोभा है आपने बढ़ाई है उसमें भी काफी फरक पड़ा है। आदि । __ पूज्य श्री ने पूछा कि- "क्या बात है ? यह तो कहो। श्री संघ के प्रागेवानों ने कहा कि- "बावजी ! टूढिया के बड़े पूज्य श्री अब चौमासे के लिये आ रहे हैं उन लोगों ने ऐसी बात फैलाई है कि-संवेगी साधुओं ने उदयपुर में उल्टासीधा प्रचार करके लोगों को मूर्ति पूजा के अधर्म में फंसाना चालू किया है। उनके प्रतिकार के लिए हम आते हैं।" और "दुष्काल में अधिक मास" की तरह आर्यसमाजी लोग भी विदेहानंद जी नाम के धुरंधर महात्मा को पडितों के साथ १७८
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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