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दोपहर चौसठ-प्रकार पूजा ठाठ से भणा दी । नो दिन भव्य धर्मोत्सव के दिन अबाल गोपाल सब को आनन्ददायी रूप में गुजरे चैत्र विद एकम पारणा कराकर केशुभाई ने प्रत्येक का कुमकुम से तिलक करके श्रीफल रूपया देकर बहुत सम्मान करके अपने जन्म को पावन-धन्य बनाया। चैत्र विद द्वितोया के दिन कपड़वंज के प्रमुख व्यति आये और नम्रभाव से विनती की कि- “गांव में नगरसेठ के यहां वर्षीतप है। उसका पारणा अक्षय तीज को आता है । कारणवश श्री सिद्ध गिरी जाया जाय ऐसा नहीं है। इससे घर आँगन आप श्री की निश्रा में महोत्सव करके वर्षीतप का उद्यापन करना है । अतः आप अवश्य पधारो।"
पूज्य श्री के मन में एक बात थी कि- “चरित्रनायक श्री के मन में जो सस्कार सींचित हुए हैं उसका अधिक विकास हो तो शासन को अभी आवश्यकता है समर्थ धुरंधर
आगमाभ्यासी प्रौढ़ प्रावाचक की जिसका बाल्यकाल से ही योग्य संस्कारों के साथ संयम ग्रहण द्वारा जीवन घड़ा गया हो । ऐसा कोई शासन-सापेक्षप्रशस्त भावना से श्री संघ की विनती सम्मान देकर, "क्षेत्र स्पर्शना बलीयसी" समझकर पुनः कपड़वंज चै. वि. 7 के दिन पधारे । नगर सेठ की तरफ से भव्य स्वागत सम्मेलन हुआ।
उस समय संवेगी साधुनों की अत्यधिक अल्प संख्या
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