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खूब उमंग से अहमदाबाद वंदन करने जाने की भावना दर्शाई । परन्तु पू गच्छाधिपति ने लाभालाभ का विचार कर मोड़ासा से लूनावाड़ा होकर सीधे कपड़वंज जाने की श्राज्ञा फर्माई |
कपड़वंज वाले भी ठेठ केसरिया जी से साथ थे । उनका भी कपड़वंज तरफ पधारने का अधिक आग्रह था । अन्ततः पौ. सु. पंचमीलगभग लुनावाड़ा पधारे तथा पोष वि. द्वितीया के पूज्य श्री धामधूम से महामहोत्सव पूर्वक कपड़वंज में श्री संघ के भव्य स्वागतयुक्त पधारे । व्याख्यान में श्री पंचाशक - ग्रन्थ के आधार पर तपधर्म तथा उसके उद्यापन की महत्ता - शास्त्रीय विधि पर विवेचन प्रारंभ किया । श्री संघ में अनोखा धर्मोल्लास जागृत हुआ। अन्य भी पुण्यात्माओं ने तपधर्म की महता समझाई । उसके उद्यापन के लिए भाव जागृत हुआ । परिणाम स्वरूप ग्यारह छोड़ का उद्यापन श्री संघ की तरफ से निश्चित हुआ । तथा घूमवाम से भव्य अष्टान्हिका महोत्सव माह सुद तृतीया से प्रारंभ हुआ ।
प्रभुभक्ति में रखने योग्य " जयणा" तथा विधि के ख्याल पर भार रखकर श्री सघ के भाविकों ने कपड़वंज के समस्त जिन मन्दिरों में स्वहस्ते स्वद्रव्य से एक एक प्रभु जी की सेवा, पूजा, भक्ति, आशातना निवारण आदि महत्वपूर्ण कार्यक्रम को प्रमुख बनाकर सबको प्रभुभक्ति की यथार्थ भूमिका का
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