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________________ खूब प्राग्रह भरी विनती की । मौन एकादशी तक दृढ़ आग्रह रखा । परन्तु पूज्य श्री ने कहा कि-" पू. गच्छाधिपति ने का. व. 3 का विहार लिखा है, अब मुझसे नही रहा जा सकता “आदि अन्ततः श्री संघ के अग्रगण्य व्यक्तियों ने एक अर्ज की कि- “साहेब ! हमारे श्री संघ पर या शासन पर कोई ऐसी आपत्ती आवे और हम आपके पास दौड़ते आवें तो आप अवश्य यहां पधारना ! इतना वचन दीजिये ! " हां ना में थोड़ा समय गुजरा । अन्ततः शासन के काम में श्री सघ जब भी याद करेगा तब में अनुकूलता मूलव प्रभुशासन के सेवक के रूप में हाजिर होने का वचन तो साधू से नहीं दिया जा सकता परन्तु पूर्णरुपेण प्रयत्न करके आने को तजबीज करूंगा!" श्री संघ ने जोरदार शब्दों में शासन की जय बोलायो तथा पूज्य श्री की बात का स्वागत किया। का.वि.3 के दिन पूज्य श्री ने प्रातः विहार करके केरिया जी की तरफ प्रयाण आरंभ किया। श्री संघ के अनेक भाविक केशरिया जी तक पांव पैदल चल कर पूज्य श्री के साथ गये । पूज्य श्री केशरिया जी से डूंगरपुर होकर टीटोई के श्री मुहरी पार्श्वनाथ जी की निश्रा में एक सप्ताह रह कर मोड़ासा से दहेगाम होकर पूज्य श्री के दर्शन-वंदन बारह वर्ष के पश्चात होने से १६६
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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