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से सामयिकपालन कर अग्रगण्य जहां एकत्रित होने थे वहां जा पहुंचे कुछ ही देर में सब प्रमुख जन आ गये । उन सब ने कुतूहल तथा भक्तिभाव से पूछा “अरे मग भाई आज यहां कैसे ? श्री संघ के काम से कितनी ही बार बुलाते हैं फिर भी वे अपने क्रिया कांड तथा स्वाध्याय से फुर्सत ही नहीं पाते । आज यहां क्यों ?''
"क्यों भगत जी ! हमारे लायक कोई कामकाज ?" इतने में मगन भाई ने सब बात की और कहा कि पूज्य श्री से उदयपुर विनतो करने जाने की भावना है । श्री संघ इस पर विचार करें । अहोहो ! यह तो "मोसाल में मों का परोसना हुया" हम तो कभी से ऐसे प्रसंग की राह देख रहे थे। अवश्य ही श्री संघ की तरफ से तीन व्यक्ति और दो आप यों पांच व्यक्ति ‘शुभस्य शीघ्रम्" उत्तम काम में शीथिलता नहीं, "प्रासोज सु 15 को जा पायो !'' मगन भाई अन्तरमन से खूब प्रसन्न हुए। देवगुरु की अचित्य कृपा के कारण मनोमन गद्गद् हो रहे।
आसोज सु. 15 की शुभ वेला में पाचों व्यक्ति उदयपुर रवाना हुए । आसोज विद द्धितीया पूज्य श्री के पास पहुंचे गये । व्याख्यान चाल था । व्याख्यान में- "शाश्वत चैत्य एवं उनको यात्रा करके देवगण विरति-धर्म प्राप्ति के लिये कैसी इच्छा रखते है ? यह अधिकार मगन भाई के अन्तर में स्पर्श
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