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________________ असोज माह में पत्र द्वारा पूज्य श्री को संसार से बाहर निकालने की कितनी ही व्यावहारिक विषयों की गुथी सुलझाने के लिए कपड़वंज श्राने की श्राग्रह भरी विनती की । इस अवधि में कपड़वंज के भाई श्री चिमनलाल को बीस स्थानक तन -नवपद तप तथा ज्ञान पंचमी तप की समाप्ति के प्रसंग में उद्यापन करने की इच्छा जागृत हुई । चिमन भाई के धर्म क्रिया में सतत साथ रहने वाले मगन भाई को पू. चरित्र नायक के पिता जी प्रासंगिक बात की कि- " मुझे ऐसी भावना हुई है ! क्या करना चाहिये ? कौन से महाराज को बुलाऊं ? तुम अधिक जानकार हो । साधुओं के परिचित भी अधिक हो | अतः कुछ योग्य मार्गदर्शन दो । 19 मगनभाई को जो रुचे वही वैद्यने कहा " " यदिष्ट वैद्योपदिष्ट" न्याय के अनुसार कपड़वंज श्री संघ की तात्विक रीति खे नाड़ी परीक्षण करके धर्म भावना में सानुबंध- वृद्धि करने के लिए पू. श्री झवेर सागर जा म. ने सब प्रकार से अनुकुल हो जाय ऐसा विचार कर चिमनभाई से कहा कि 'महानुभाव ! आपकी भावना उदात्त है । अनुमोदनीय भी है । ऐसे रंग में उत्तम चरित्र सम्पन्न तथा तत्व के जानकार मुनि भगवंत को लाने से अपने कार्य को सच्ची सफलता मिले, साथ ही अनेक बाल जीव भी शासन के अनुरूप बने | इससे मुझे ऐसा लगता है कि पू. श्री झवेरसागर को म. जो आज के युग में आगम के श्रेष्ठ जानकार १५६
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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