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का स्वागत किया । पूज्य श्री सौभाग्य विजय जी म. ने भो श्री संघ में स्थिरता चौमासे के लिए बहुत आग्रह किया फिर भी घाणेराव श्री संघ में महत्वपूर्ण कार्यों के लिए चातुर्मास लगभग निश्चित सा हो गया है अतः वै. वि. 10 विहार पून: घाणेराव की तरफ पधारे ।
इस तरह पूज्य श्री का वि. सं. 1940 का छठवां चातुर्मास संयोगवश उदयपुर में हुआ । चातुर्मास दरमियान श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति तथा श्री परिशिष्ट पर्व का व्याख्यान वाचन हुआ । प्रसंग-प्रसंग में ही श्रावक जीवन में विरति धर्म की महत्ता समझाने के आशय से द्रव्यस्तव के विधिपूर्वक करणीयता के सम्बन्ध में खूब प्रकाश प्रसारित हुआ ।
चातुर्मास की अवधि में ही चौगान के देहरासर में अव्यवस्था आदि से हो रही अशातना को टालकर निर्माणादि को व्यवस्था में हो रही शिथिलता को दूर कर प्रभु जी के चक्षु टीका माभुषणों तथा पूजा सामग्री में घटित योग्य फेरफार कराकर श्रावकों को अपने कर्तव्य में दृढ़ कराया । चातुर्मास में कपड़वंज मे पू. चरित्रनायक के पिता श्री मगनभाई के बारबार पत्र माते जिसमें उन्होने दीक्षा हेतु प्रवल इच्छा व्यक्त की । साथ ही साथ सांसारिक अवरोधनों की भयानक उलझनों में से छूटने का उन्होने बारंबार आग्रह किया ।
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