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बताकर बड़ी दीक्षा हेतु उदयपुर पधारने को ग्राग्रह भरी विनती की, वै. सु, 7 को विहार कर तथा विहार में दो भाई साथ रहेंगे ऐसा निश्चित कर संघ के प्रमुखजनों ने पूज्य श्री को समाचार दिये । विद 14 से नूतन दीक्षितों को मांडलिया योग में पूज्य श्री प्रवेश कराया । वे सु. 14 के लगभग पू पं. श्री सोभाग्य विजय जो म, उदयपुर पधारे भव्य प्रवेश महोत्सव हुआ ।
उसी दिन से बड़ी दीक्षा के निमित्त श्री संघ की तरफ से श्री सहस्त्रपणा पार्श्वनाथ प्रभु के जिनालय में भव्य जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव प्रारंभ हुआ । पूज्य श्री के तपोबल तथा वासक्षेप के प्रताप से चारों नूतन दीक्षितों की बड़ी दीक्षा वैशाख वि. 7 के मंगल दिन के प्रथम प्रहर 9.37 मिनिट पर निर्विघ्न हुई। उस समय संघ के प्रमुखजनों ने पूज्य श्री के चातुर्मास की विनती की। उदयपुर के कितने ही जीर्णता प्राप्त देहरासरों के जीर्णोद्वार के सम्बन्ध में मंगल प्रेरणा त्यों ही पुनीत मार्ग-दर्शन की प्रमुख ग्रावश्यकता पर जोर देकर श्री सघ ने पूज्य श्री के चातुर्मास की जय बुलवा दी ।
पूज्य श्री ने भी नूतन दीक्षितों की बाकी के योग तथा सात प्रांबिल इत्यादि पूर्ण कराने में जेठ सुद पूरा हो जाय जिसके बाद प्रार्द्रा नक्षत्र समीप होने से वर्षा के कारण विहार में विघ्न विराधना अधिक हो ऐसा समझकर संघ की बात
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