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का विधिपूर्वक आराधना खूब ठाठपूर्वक सम्पन्न हुई । उसमें चैत्र सु. 14 के व्याख्यान प्रसंग में उदयपुर श्री संघ के प्रमुख सात आठ श्रावक तथा दीक्षार्थियों के कुटुम्बी जन उपस्थित होकर "वैसाख में बड़ी दीक्षा कराने के लिए आप श्री उदयपुर पधारों' ऐसी जानदार विनती की ।
पूज्य श्री ने चैत्र विद 2 चित्तौड़ से विहार करके चैत्र वि. 10 लगभग उदयपुर पधार गये । पूज्य श्री के पास विद 10 दोपहर श्री संघ के प्रमुख तथा दीक्षार्थी के कुम्टुबीजनों ने सम्मिलित होकर बड़ी दीक्षा की मांग की । पूज्य श्री ने साध्वी जी म. को मिलकर नवदीक्षितों की चर्या की बात सुनकर विद 13 को मुहूर्त देखने को बात कही । विद 13 के दोपहर पुन: श्री संघ के आगेवान तथा दोक्षार्थियों के कुटम्बोजन बड़ी दीक्षा के मुहूर्त के सम्बन्ध में मिले । अतः नूतन दोक्षार्थियों को योगवहन कराना बाकी रहने से पन्द्रह दिवस बाद के दो मुहूर्त प्रदान किये "वैसाख विद 7 तथा ज्येष्ट सुद }} 3 साथ ही यों कहा कि " महानिशीथ के योग किये हुए योग तो मैं करा दूंगा लेकिन बड़ी दीक्षा मुझ द्धारा नही दी जा सकती इसलिए घाणैराव में बिराजमान पू. पं. श्री सौभाग्य विजय जी म. को विनती कर बुला लाइये ।
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संघ के प्रमुख जन तथा दीक्षार्थियों के कुटम्बीजनों ने तत्काल घाणेराव जाकर पू. झवेर सागर जी म. का पत्र
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