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________________ कपासन आदि गांवों में स्थिरतापूर्वक विचरण करके श्रामेट चारभुजा रोड़ तक विचरण करके संवेगी साधु जों विचरण के अभाव में माग से विमुख बनें । अनेक जैनों को प्रभुशासन तरफ मोड़ा । चित्तौड़ तोर्थ चैत्री झोली की भावना से चैत्र सु. 3 लगभग चित्तौड़ शहर में पधारे । पूज्य श्री के व्याख्यानों से वहां की जनता लगभग बाहर वर्ष से परिचित हो चुकी थी । परन्तु उस समय रतलाम अचानक जाने का होने से अनेक जिज्ञासुत्रों की धर्माकांक्षा प्रधूरी रह गयी । परन्तु भावी योग से पूज्य श्री के पुनरागमन से अनेक भाविक लोग पूज्य श्री का लाभ लेने लगे । प्रातः के व्याख्यान, दोपहर रात्रि प्रश्नोत्तरी आदि से जैन तथा जैनेतर जनता पूज्य श्री के प्रगाध ज्ञान से प्रभावित हुए । धर्मप्रेमी जनता ने पूज्य श्री को स्थिरता के लिए आग्रह किया। शाश्वत चैत्री - श्रोली की आराधना का महत्व समझाने के साथ मकल जिन शासन के साररूप श्री नवपद जी की अरावना का महत्व ओजस्वी दो में समझाकर अनेक पूण्यात्माओं को श्री नवपद जो की शाश्वत आराधना के प्रतीकरूप चैत्री प्रोली करने के लिये प्रेरणा दी । अनेक पूण्यवानों ने तैयारी करके पूज्य श्री ने भी लाभालाभ समझकर स्थिरता की, पूज्य श्री के व्याख्यान श्रवण से विशिष्ट प्रेरणा प्राप्त कर खूब उमंग से नवपद जी १५५
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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