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मोह माया का बंधन छूटना आसान नहीं ।
किन्तु हमारे लिए तो शास्त्रकारों का निर्देश है किछोटी दीक्षा के बाद छ- काय की जयणा, पांच समिति तीन गुप्तिका पालन- जयरणा का पूरा ख्याल, आहार-विहारादि में साधुता का अभ्यास और साधुचर्या पूरी तरह से नवदीक्षित आत्मसात् कर लें फिर योगयता की ज च के बाद पंच महाव्रत रुप बड़ी दोक्षा योग्य क्षेत्र-शुद्धि एवं पंचांग शुद्धि तथा ग्रहों का विशिष्ट बल आदि देखकर दी जाती हैं इसमें उतावली ठीक नहीं ।
अभी बड़ी दीक्षा का मुहूर्त है भी ठीक नहीं। वैसाख में अच्छा दिन आता है, तब तक नूतन दीक्षितों को साधुचर्या का ठीक ढ़ंग से प्रासेवन करने दो " आदि । दीक्षार्थियों के सम्बन्धियों ने इस बात को सुनकर विनती के भाव से बोले कि- "बापजी सा ! इन सब बातों की ताक भी कांई जाणे ? परन्तु बापजी । वैसाख में पधारनो पड़ेला मे फिर से आपके पास आवांगा ही । पर ग्राप माकी बात जरुर ध्यान में रखजो । " पूज्य श्री ने "वर्तमान जोग" "जेसो क्षेत्र स्पर्शना" का जवाब देकर साधु समाचारी का भान कराया ।
पूज्य श्री ने संघ के बहुत आग्रह फाल्गुन चौमासे के लिए होते हुए भी माघ सु. 5 प्रातः करेड़ा जी तीर्थं तरफ जाने के लिए विहार किया । वहां से पूज्य श्री रेलमगरा,
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