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उपस्थित हो गये । योग्य समय पर राजेहरण-प्रदान हुआ। बाद में संसार के भार को उतारने के प्रतीकरुप कच्चे पानी से स्नान करके वेश परिवर्तन क्रिया हुई, तत्पश्चात पूज्य श्री के पास आकर शेष विधि की " करे निमत्ते" सूत्र द्वारा सम्पूर्ण संसार का त्याग करने के रूप में सर्व - विरति का पंचकखान स्वीकार कर अन्तिम दिग्बंध द्वारा चारों दीक्षार्थियों ने संसार बिल्कुल याद ही न आवे इस उद्देश्य से अपने नाम भी नये स्थापित कराये ।
पश्चात सकल श्री संघ के साथ चौगान के श्री पद्मनाथ प्रभु के दर्शन करके चैत्यवंदन करके पूज्य श्री के उपाश्रय पर पधारें। पूरे उदयपुर शहर में पूज्यश्री की निश्रा में सम्पन्न दीक्षा के यह प्रसंग जैन एवं जैनेतर सब लोगों को खूब प्रेरणादायी सिद्ध हुआ । पूज्य श्री ने माघ सु. 5 के विहार की तैयारी करके नवीन दीक्षितों के सम्बन्धियों का योग वहन कराके बड़ी दीक्षा के लिए विज्ञप्ति कराकर इस सम्बन्ध में स्थिरता लाने का आग्रह किया ।
पूज्य श्री ने कहा कि महानुभावों ! आप कहते हैं जो ठीक है | किन्तु भी प्रथमिकशाला में लोग भरती हुए हैं । अभी कुछ दिन इन्हें पूरी तरह से अभ्यास करने दो, बड़ी दीक्षा कोई मामूली चीज नहीं । आप लोगों की निगाह में यह छोटी दीक्षा बड़े महत्व की है क्योंकि आप लोगों का
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