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________________ भव्यरथ यात्रा थी जिसमें दोक्षार्थी चारों बहिनें मोरचे पर लड़ने जाते फौजी शिक्षण वाले मिलट्रीमेन को तरह संसार के भीषण वातावरण में से बाहर निकल कर स्वौच्छा से सयम धर्म की पालना के द्वारा उद्दी रणादिपूर्वक कर्म सत्ता के जूझने के लिए आवश्यक भावना के साथ पूज्य श्री के पास उमंगयुर्णक वासक्षेप डलाने जगत के सर्वोत्तम पदार्थों को भी मुक्त मन से त्याग कर देने के प्रतीकरुप वर्षीदान की प्रक्रिया खूब उमंग से की। ___ रथ यात्रा पूरी होने पर सीधे साध्वी जी म. के उपाश्रय में दीक्षार्थी बहिने गयी। वहां प्रतिक्रमण करके, संथारा पोरसी पढ़ाकर सोकर प्रातः जल्दी उठकर संयम मार्ग पर सरलतापूर्वक प्रयाण हो सके इस उददेश्य से श्री नमस्कार महामंत्र का विशिष्ट जप किया। योग्य समय प्रतिक्रमण किया। धर्मोपकरण का पडिलेहण किया। पास के ही घर पर परिमित जल से अंग शुद्धि करके श्री सहष्त्रफणा पार्श्वनाथ प्रभु के देहरे तथा गोडी जी डेरी पर भावपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा स्नात्रपुजा के साथ करके पू. गुरुदेव श्री का वासक्षेप लेकर दीक्षा के लिए निर्धारित स्थल पर शासन प्रभावना पूर्वक ससमय उपस्थित हो गये । पूज्य श्री भी दीक्षा के लिए क्रिया-मंडप यथासमय १५२
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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