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________________ स्वैच्छा से जो देना है उसे लेकर “दीक्षा महोत्सव श्री संघ की ओर से करना ही. तय कराया। वह जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव विद 11 से प्रारम्भ हुआ जिसमें विविध पूजा श्रावकगण अंतरंग भक्ति से दोपहर के समय पढ़ाते । दीक्षार्थी बहिने भी स्नात्रिया के रुप में खड़े रहकर भव समुद्र से तारने वाले प्रभु शासन की आराधना को सम्पूर्ण सक्रिय रीति से पालन करने के लिए, सर्वविरतिजीवन को सफल आराधना के लिए अष्टप्रकारी पूजा रुप द्रव्यस्तव की प्रासेवा भाव स्तव-प्राप्ति के सफल उद्देश्य से करने का प्रयत्न करने लगे। __ माध सु. 1 के दिन पूज्य श्री ने चारों दीक्षार्थी बहिनों को साध्वी जी के म. के साथ बुलाकर चरित्र-धर्म की सफल आराधना के लिए पांचवे पारा में जरुरी पांच समिति, तीन गुप्तिका जयणमय पालन, गोचरी के बयालीस दोषो तथा मांडली के पांच दोषों की समझ, चरण सितरीकरण, सित्तरी की सूचना प्रादि प्राथमिक विषयों की जानकारी देकर संयम जीवन में पूरी तरह से अघटित अकर्तव्यरूप कितने ही प्रसंगों को नियम पंचकूखाण कराया। माघ सु. 2 दोपहर श्री संघ की तरफ से जल यात्रा की
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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