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निर्वाण-भूमि तो अष्टापद की है, मेरूपर्वत पर कोई कल्याणक हा नहीं है तो आज का दिन "मेरुतेरस'' क्यों ? "
इस प्रश्न को पेश किया। स्पष्टीकरण रुप में पुज्य श्री ने कहा कि-जैसे मेरुपर्वत अखिल विश्व के मध्य भाग में है उसी प्रकार मेरुपर्वत की समभूमितल से दिशा विदिशाओं में प्रत्येक वस्तु का अन्तर नापा जाता है । इसी तरह अवपिणी काल में अठारह सागरों में गम्भीर मिथ्यात्व के अंधकार उलीचकर प्रभुशासन की सर्वप्रथम स्थापना करके जगत में
आत्मा का हित किस में ? अपना कर्तव्य क्या? इस बात पर विश्वास को । अतः मेरुपर्वत की तरह प्रभु श्री ऋषभदेव अपने
आध्यात्मिक क्षेत्र के मानदण्ड रूप बने । वैसे ही प्रभु के निवाण-कल्याण की आराधना आज के मंगल दिन भावों के चढ़ने पर विवेकपूर्वक करके जीवन में आज्ञारुप मेरु के मानदण्ड से अपनी आराधनाएं कितनी कार्यक्षम होती है ? उसका समझपूर्वक ज्ञान सीखना जरुरी “ आदि समझाकर सबको आज्ञानुसारणयुक्त जीवन बनाने की प्रेरणा दी।
भावी योग से दीक्षार्थियों में से सबसे अधिक लाभ कौन ले, ऐसी होड़ा होड़ो में व्यर्थ में वातावरण कलुषित न हो उसी प्रकार किसी की भावना को ठेस न लगे इससे पूज्य श्री की सूचना से श्री संघ में चारों दीक्षार्थियों को
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