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जो कार्यक्रम प्रत्येक देहरासर में प्रारम्भ किया उसे पूज्य श्री ने बारंबार प्रोत्साहन देकर श्री संघ में प्रभुक्ति में कालबल से प्रागत व उपेक्षा शिथिलता की प्रवृति को हटाने के लिए वातावरगा का सृजन किया । बोच में प्रसंगोपाल पौष दशमी के दिन सर्वानाखेडा तीर्थ पर सकल श्री संघ के साथ जाकर श्री वातराग परमात्मा का जगत के लिए हितकारी किसलिए तथा किसप्रकार इसे व्याख्यान में सनभाया -" माह के संस्कारों पर विजय प्राप्त करने का भागीरथ पुरुषार्थ के अतिरिक्त जीवन में कुछ भी प्राप्त करने जैसा नहीं है " इस बात पर बल देकर प्रभु
श्री पार्श्वनाथ के जन्म का सच्चा उद्यापन सर्वविरति मार्ग पर जाने के रुप में दिखाया।
परिणाम स्वरुप दीक्षार्थी बहिन के सर्वविरति का परिणाम उच्च कोटि का हुग्रा । दीक्षार्थी के आग्रह से पूज्य श्री ने दोक्षार्थी के भावों को वृद्धि के लिए व्याख्यान में "सर्वविरति धर्म को महत्ता तथा वासनाविजय" पर शास्त्रीय व्याख्यान प्रारंभ किये । परिणामतः दो कुमारिकायें तथा एक विधवा बहिन को संसार की असारता का भान होकर जोरदार वैराग्य की स्पर्शना हुए । रोज पूज्य श्री के व्याख्यानों को सुनकर दृढ़ होती वैराग्य भावना के बल पर दोनों कुवारी बह्निों ने माता पिता की मोहमय धांधली
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