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________________ भरे वातावरण पर विजय प्राप्त कर कुटबिम्यों को समझाकर पौष सु. 10 के दिन दीक्षा के मंगलमय मुहूर्त को निकलवाया। विधवा बहिन ने भी अपने कुटम्बियों को साथ लेकर मुहूर्त दिखाने का यह असर लाभ लिया । भावो योग से माघ सु. 3 का सुगन बाई की दीक्षा के लिए निश्चित मुहूर्त शान्ति कुमारी तथा भागवंती बहिन (कुमारिका) के लिये इसी प्रकार झत्रक बहिन (विधवा) के लिए यथोचित संगत ठहरा । इस प्रकार श्री संघ में अपूर्व हर्षोल्लास का वातावरण हुआ। क्योंकि मेवाड़ जैसे प्रदेम में एक नही दो नहीं, चार चार श्राविकानों जिनमें दो तो कुवारी यौवन की सीढ़ी पर पांव रखतो सत्रह से बाईस वर्ष का बालिकाये प्रभुशासन को शरण में जीवन समर्पित करने तैयार होने की बात से श्री संघ के आबाल वृद्ध सब में अनुमोदन के भाव तथा सयंम का प्रेम झलक उठा। श्री संघ को तरफ से पौष सु. 13 के मंगल दिन से चारों दीक्षार्थी बहिनों का दीक्षा प्रसंग में बंधाने के लिए अपने घर प्रांगण बुलाकर भक्तिपूर्वक भोजन कराकर बहुत सम्मान करने की शुरुआत हुई । भाँति भाँति के वाद्य यंत्रो के सुमधुर स्वर कोष के बीच में पालकी इत्यादि में बिठाकर शासन शोभा बढ़े इस रीति से दीक्षार्थियों के १४४
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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