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विशिष्ट कार्य में तन-मन धन से करण - करावण रूप में लाभ लेने की प्रेरणा की । दीक्षार्थी बहिन की इस प्रवृति से संघ
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अनोखी धर्म भावना खिल उठी । जिस मुहल्ले में दीक्षार्थी बहिन प्रभुभक्ति के लिए जाय, वहां के श्रावक दीक्षार्थी का बहुत इज्जत करें, पूजा में में लगे लोंगों की भक्ति करें तथा स्वयम् भी पूजा के काम में सक्रिय रूप से जुट जाय ।
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परिणाम स्वरुप श्री वीतराग प्रभू की पूजा में श्रावकों का कैसा ऊँचा कर्तव्य है ? उसकी अनुभूति अनेकों के हृदय में होने लगी । मौनी एकादशमी के प्रसंग में पूज्य श्री ने दीक्षार्थी के परिणाम की धारा को अधि निर्मल बनवाने के शुभ लक्ष्य से न बोलने द्रव्य मौन करते प्रभु-शासन की मर्यादा प्रमारण में संयमी जीवन जीने के रुप में भी मौन को महत्ता जतलाकर बारह मास के पर्व की तरह मौन एकादशी के महत्व को सर्व विरती - चारित्र को लगभग प्राप्ति तथा निर्मल- प्राराधना के दृष्टिकोण से समझाई |
सुव्रत सेठ तथा श्री कृष्ण - वासुदेव के दृष्टान्त से द्रव्य भाव दोनों प्रकार से मौन एकादशी की आराधना पूण्य शालियों को किस तरीके से करना उसे भी अधिकारपूर्वक विस्तार से समझाया । दीक्षार्थी बहिन के मौह को घटाने तथा जीवन शुद्धि के परमार्थ की पहिचानने, प्रभु भक्ति का
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