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________________ दीक्षार्थी के कुटम्बी श्री संघ के अग्रगण्यों को सांयकाल मिले और अपने घर ऐसा अवसर है सो पूज्य श्री को अवश्य विनती कर रोकने की प्रेरणा कर श्री संघ के गग्रण्यों ने कहा कि " आप स्वय पांचम के व्याख्यान में विनती करें हम भी पूज्य श्री को आग्रह करेगें ही । " मृगशिर सु. पंचम के व्याख्यान में दीक्षार्थी के कुटम्बी तथा श्री संघ ने खूब आग्रह किया तथा स्थिरता के लिए जय बुला दी । मृगशिर सुद सातम दोपहर 2.24 मिनिट घनार्क के मुहूर्त बैठते ही प्रभुशासन की गरिमा तथा मोह के संस्कारों को शिथिल बनाने के लिए पूज्य श्री की प्रेरणा से दीक्षार्थी के आठ दस सखी मंडल के साथ उदयपुर शहर के समस्त देहरासरों स्वयम् के परिश्रम से सफाई करने से लेकर पूजा के समस्त कार्यों को करने के रुप में जिन भक्ति महोत्सव मृगशिर सुद सातम के व्याख्यान में ज्ञान पूजा करके वासक्षेप दूर करके सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ के देहरासर से शुरुआत की । पू, श्री ने " प्रभूभक्ति में स्वद्रव्य तथा खुद प्रवृति से प्रवर्तना के बल से अपूर्व रीति से मोह के संस्कारों का ह्रास होता है " यह बात योग्य तरीके से समझाकर संघ में से भी अन्य श्रावक श्राविकाओं को इस प्रभु भक्ति का १४१
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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