________________
पूज्य श्री ने श्रा. सु. 13 का विशिष्ठ मुहूर्त निकाल कर श्री संघ को वह प्रतिष्ठा करवाने की प्र ेरणा दी जिससे वह प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ ही पू. महाराज श्री के स्वर्गवास निमित्त उत्सव भी करावाने का पूज्य श्री ने सूचित किया ।
श्री संघ में पूज्य श्री की आज्ञा का स्वागत किया । धूमधाम से श्रा. सु. 5 से प्रतिष्ठा महोत्सव की शुभ शुरुआत हुई । इस महोत्सव में पूज्य श्री ने संघ के अग्रगण्य की प्रभुभक्ति के प्रदर्श- महिमा तथा यथोचित कर्तव्य की मर्यादा के विशिष्ठ उपदेश से प्रेरणा देकर उदयपुर के स्थानीय जिनालयों में होती हुई आशातना निवारण के लिए आठ-दस श्रद्धालु भक्तिवंत को नामजद करके प्रतिमाह आठ दिन आसपास के गांवों में जाकर आशातना के निवारण की प्रेरणा दी ।
कुल मिलाकर श्री सघ में पूज्य श्री की प्र ेरणा से अपूर्व भावोल्लास के साथ विविध तपस्याये तथा धर्मं कार्य उत्तम प्रमाण में सम्पन्न हुए । विक्रम सं. 1939 के चातुर्मास के विषय में उदयपुर श्री संघ तरफ से प्रकाशित प्राचोन ऐतिहासिक पुस्तक (पृ. 29 ) में निम्नानुसार धार्मिक कार्यों का उल्लेख मिलता है :- चौगान के देहरासरजी के पास की धर्मशाला जीर्ण हो रही थी उसका तथा कम्पाउण्ड के चारों तरफ का कोट खर-बिखर होने लगा । इन दोनों का जीर्णो
१३५