________________
की मार्मिक वैराग्य भरी देशना सुनकर धर्मकार्य के आचरण की गंभीर प्रेरणा प्राप्त की । पूज्य श्री के उपदेश से श्री संघ में गोड़ी जी महाराज के देहरे आषाढ़ विद13 से प्रष्टान्हिका महोत्सव करने का विचार किया परन्तु संयोग ऐसा हुआ कि महोत्सव में ढील करनी पड़ी ।
चौगान के दहेरासरों की स्थापना सागर शाखा के मुनियों भगवंतों की प्रेरणा से होने वाली वहां की व्यवस्था में पूज्य श्री अधिक देख-रेख रखते थे जिससे वि. सं. 1862 में श्री मुनि भावसागर जी म. के उपदेश से शासन नायक तीर्थकर प्रभु महावीर परमात्मा के डेरी की हवाला में उस समय संयोगों का अनुशरण करके स्थापना की । परतु बाद में दर्शनार्थियों को वह स्थान अनुकूल न रही अतः आशातना इत्यादि के भय से सं. 1937 में चौगान के देहरासरों के विशाल क्षेत्र में भी शान्तिनाथ जी प्रभु के देहरासर के पास की भूमि तय कराकर पूज्य श्री ने काम प्रारम्भ कराया । परन्तु संयोगवश वह काम ढील में पड़ गया ।
अन्ततः सं. 1938 के चातुर्मास में विशिष्ठ प्र ेरणा देकर आरस पाषरण, जोधपुरी पाषाण आदि को जोड़कर उत्तम सोमपुरा मिस्त्री को चित्तोड़ से बुलाकर सं. 1939 के मगशिर महिने से तीव्र गति से कार्य प्रारम्भ करा दिया । जिनालय की प्रतिमा का काम " शुभस्य शीघ्रम" न्याय से
१३४