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________________ सुख-शाता कहना । संवत् 1339 वैसाख विद 3 बुधवार लि. झवेर सागर मु. कोटा-रामपुरा से " वहां वैसाख विद चौदस के व्याख्यान में उदयपुर श्री संघ के अग्रगण्य श्रावकों ने भावभरी आग्रहपूर्ण विनती की कि- बापजी सा ! आप तो हमको छोड़कर चले जाओ ! पर हम कहां जावें ? जड़ियों की गली में मंदिर शिखर पर ध्वजडंड पुराना हो गया सो नया कराया है ! प्रतिष्ठा के लिए आपको पधारना पड़ेगा । पूज्य श्री के बहुत आनाकानी करने पर भी अंत में उदयपुर संघ जय बोलायी । पूज्य श्री जे. सु. विहार करके जे. वि. 5 लगभग उदयपुर पहुंच गये । तुरन्त जे. व. 7 से उत्सव चालू करके श्री से जेठ विद 13 के मंगलमुहूर्त में पूज्य श्री के साथ नूतन ध्वजा दंडा रोपण कराया । संघ में ठाठ वासक्षेप के पूज्य श्री ने उदयपुर में चातुर्मास उपरा उपरी कारणवश करना पड़ा । परन्तु पूज्य श्री ने सयम चर्चा की सावघानी, दोष रहित श्राहार की गवेषणा तथा गृहस्थों के अवधि बढ़ने वाले परिचय के प्रभाव, आदि शास्त्रीय जयणा से स्वयं के तथा साथ के साधुओं के संयमी जीवन को निर्मल रखने की विशेष सावधानी युक्त प्रयत्न किये थे । भावी योग से आषाढ़ वि. चौथ की रात्रि मुनि केशव सागर जी म को १३१
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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