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पेट का दर्द असहय हो उठा जिससे तत्काल बाह्य उपचार किया।
दूसरे दिन देशी वैद्य की देखरेख में उपचार प्रारम्भ किया । परन्तु किन्ही भावी विशिष्ट संकेतों के कारण केशव सागर जी म. की तबियत दिन-प्रतिदिन क्षीण होने लगी, भोजन की रूचि कम हो गयी । दाह ज्वर जैसा खूब ही कष्ट का उदय हुआ । इ . समय पूज्य श्री ने अाराधना-वंदना, संथार-प्रयन्त अनुसरण पयन्न, पाडर-पच्चकखारण तथा पंच सूत्र (प्रथम अर्थ के साथ) व्यवस्थित रूप से समझाकर आराधना का बल देने का सतत प्रयत्न किया।
आषाढ़ वि. 12 की रात्रि प्रतिक्रमण के बाद संथारापोरसी पढ़ाकर एकदम छाती में घुटन होने लगी । पूज्य श्री ने नाड़ी तथा प्रांखों की स्थिति देखकर श्रावकों को सचेत कर दिया। सब लोगों ने सामुहिक रूप में श्री नवकार मंत्र का घोष प्रारम्भ किया, अन्ततः सवादस बजे लगभग केशवसागर जी म.स्थूल देह छोड़कर पूज्य श्री के अन्तिम घड़ो के कान में कह गये श्री नवकार महामंत्र को सुनकर दोनों हाथ जोड़कर सबको क्षमावत काल धर्म को प्राप्त हुए ।
सकल संघ में शोक की लहर फैल गयो । पूज्य श्री ने भी परिपक्व आयु दीक्षा लेकर ग्यारह वर्ष से अपनी तबीयत
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