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के सम्बन्ध में, धोवण के पानी की बात, बासी, विहल को अभक्ष्यता, "पात्र में गिरा वह साधू को चलेगा" की बात का होता हुआ दुरपयोग, आदि विषयों पर जोरदार सचोट दलीलों द्वारा प्रकाश फैलाया। तथा अनेक स्थानकमागियों ने पूज्य श्री की समझाहट शैली से मिथ्यात्व का त्याग कर प्रभुशासन की मर्यादा में आने के लिए उद्यत बने। .
पर्वाधिराज पर्युषण-पर्व की आराधना के लिए उदयपुर श्री संघ में अनोखी जागृति आई क्योंकि नवागन्तुक स्थानक मार्गी कुटुम्बों के चढते भावोल्लास से श्री संघ में आराधना का उल्लास प्रबल हुआ । चौसठ-प्रहरी पोषध, अट्ठाई की तपस्या श्री कल्प सूत्र का रात्रि-जागरण तथा वहोरावने के चढावे त्यों ही स्वप्न उतारने आदि की उछामणी अभूतपूर्व होने लगी।
संवत्सरी महापर्व की आराधना के प्रसंग में "कषायों का विसर्जन हृदय से करके समस्त जीवो के माथ मेत्रीभावना आदर्श नमूने के रुप "प्रभुशासन के सर्वावरति धर्म का पालन यही यथार्थं आराधनाओं का सार है '' यह जता कर प्रभु-शासन की मार्मिकता को सयझाया। परिणाम में आराधक-पूण्यात्माओं में अपूर्वं भावोल्लास जाग्रत हुआ। इस चौमासे में अनेकानेक धर्म कार्यो में से कितने ही विशिष्ट धर्म कार्यों का उल्लेख उदयपुर के प्राचीन इतिहास की छोटी
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