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सी पुस्तक में इसके प्रमाण मिलते हैं।
"सागर शाखा के प्रभावक--मुनि पुगवों द्वारा स्थापित चौगान के विशाल जिनालयों में प्रभुभक्ति के सम्बन्ध में भावोल्लास की वृद्धि हो ऐसा सुन्दर चांदी का कलश-हॉडी आदि सुन्दर उपकरणों की श्रावकों को उपदेश देकर पूज्य श्री ने संग्रह कराया। ज्ञान पंचमी को ज्ञान संग्रह के लिए प्रतिवर्ष-लगे जैसे चदरवा, पछवाई लकड़ी, के चढने-उतरने का स्टेन्ड विविधरंग के सुन्दर रुमाल प्रादि सामग्री श्री संघ द्धारा तैयार कराई । श्री गौड़ी जी महाराज का तिलक जीर्ण हो जाने से रत्न जडित सुन्दर कारीगरी वाला नया तिलक बनवाया।
रत्न की प्रतिमा जी को पधराने के लिए सुन्दर मकराना के शिल्प कलावाला भव्य सिंहासन तैयार करवाकर गौड़ो जी म. के देरासर में पधगया, जिसमें रत्त के प्रतिमा जी व्यवस्थित रूप में पधराये । छोटी-बड़ी पंचतीर्थो: चौवीशी, धातुमुर्तियों के अभिषेक के समय आशातना टालने के लिए सुन्दर पीतल का सिंहासन (नालीदार) गोड़ी जी म. के देरासर में पधराया।
चोगान के दहेरे विराजमान होती चोवीशी के प्रथम तीर्थकर श्री पद्मनाभ प्रभु भगवान के कुन्डल व्यवस्थित नहीं थे। श्रावकों को उपदेश देकर रत्नजड़ित सोने के सुन्दर
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