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________________ उनकी बातों का खंडन करने लगे तो शायद सामने वाला यहां अपनी दाल नहीं गले यों विचारकर "हमें झंझट में नहीं पड़ना" "हम चर्चा को नहीं मानते"" जिसे सत्य समझना हो वह हमारी बातों को विचारे" आदि शब्द छल के पीछे अपनी भ्रामक मान्यताओं को ढॉपढ़पकर विहार कर जाय तो बात का योग्य निराकरण नहीं आवे । अतः पूज्य श्री ने चौमासे को चौदस तक बात को जान बूझकर डोलने दी। बात की बहुत चर्चा नहीं को जिससे सामने वाले तनिकजोर में रहे और यहां से खिसके नहीं। आषाढ़ विद 5 के लगभग से पूज्य श्री ने पद्धतिसर स्थानकमागियों के एक एक मुद्धों का क्रमानुसार दलीलों एवं शास्त्र पाठों को प्रकट कर निरस्त करना प्रारभ किया । स्थानकमागियों को मान्य बत्तीस आगम में से शास्त्र पाठों को एक के पीछे एक प्रस्तुत करने लगे । संघ में चर्चा अत्यन्त रसयुक्त हो उठी । अभिनिवेश वाले गिनती के व्यक्तियों के सिवाय अधिकांश में भोली जनता सत्य तत्व के निर्णय की दिशा में पूज्य श्री के सचोट तर्कों तथा शास्त्र पाठों से मुड़ने लगी। परिणाम में पर्वाधिराज पर्युषण के महापर्व के तीन सप्ताह पूर्व से ही सेंकड़ों की संख्या में स्थानकमागि पूज्य श्री के व्याख्यान में आने लग गये । बाद में "मुहपत्ती" बांधने १२१
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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