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________________ कभी धर्म कहा नही है ।", द्रव्य पूजा में कच्चा पानी अग्नि, फूल आदि कितनी ही सारो "हिंसा है।" "धर्म तो दया, ' रुप अहिंसा--रुप होता है ।" आदि भावार्थ के उलटे तर्कों से जोश भराप्रचार करने लगे। "प्रतिपक्षी की जितनी ताकत हो उसे पूरी अजमा लेने का अवसर देकर सामने से जब बवाल निकलते हो तब अवसर की राह देखने के बहाने मौन भो वाद कला का अजब नमूना हैं " इस प्रकार पूज्य श्री अपना कर शुरुअात में विरोधियों को जो कहना है सो पूरा कह दें । अतः बाद में क्रमसर पद्धति के प्रणाम में जवाब देने में सुविधा हो, तत्काल प्रतिकार नहीं किया। लोगों में स्थानकवासियों के बड़े महाराज के तर्कों का उहापोह प्रारंभ हुआ। पूज्य श्री के पास कितने ही जिज्ञासू गण पूछने आये इसलिए पूज्य श्री ने ऐसे जोरदार तर्कबद्ध पूर्तियां तथा शास्त्र के पाठ सामने रखकर सचोट खंडन किया। इस प्रकार से जिज्ञासू पुनः स्थानकवासी महाराज के पास जाय और वह नये तर्क सुनकर लौटकर पूज्य श्री के पास पावै । इस प्रकार आषाढ़ सु. 15 तक बात को टलने दी। इसके पीछे पूज्य श्री को दीर्घदृष्टि यह थी कि जो पहले से ही भड़भड़ाहट से शास्त्र पाठों के प्रकट करने के साथ ही १२०
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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