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टुकड़ो में विभाजित हो गया है कर दिया गया है। किये जाने के प्रबल प्रणाम हैं। पूज्य जवेर सागर जी महाराज के जीवन चरित्र से समस्त साधू साध्वी श्रावक श्राविकाओं को एकता का सबक लेना उचित हैं ।
पूज्य श्री जवेर सागर जी महाराज सा. के चरित्र से यह भी प्रकट होता है कि तत्समयसमस्त तपागच्छ का एक ही गच्छाधि पति होता था । लेकिन आज की स्थिति इससे सर्वथा भिन्न है । क्या हमारा साधु एवं श्रावक समाज पूर्व इस व्यवस्था की सराहना नही करेगा एवं वर्तमान स्थिति की विषमता के निवारण की ओर ध्यान नहीं देगा ।
चरित्रनायक के देवनागरी में लिखित प्राचीन-पत्रों एवं दस्ता वेजों से ज्ञात होता हैं कि गुजरात ( मेहसाना) के मूल निवासी होते
वे भी उन्हें मेवाड़ी, मालवी, एवं हिन्दी का अच्छा ज्ञान था । इन्ही
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पत्रों एवं दस्तावेजों को आधार बनाकर यह पुस्तक लिखी गई है ।
इस चरित्र के लेखक श्री आगम ज्ञान निपुण - मति, आदर्शचरित्रधर, बहुतविद्वत प्रवर, प्रन्यास प्रवर श्री अभय सागर जी महाराज है जो अपने श्री संघ की पहली श्र ेणी के विद्वान हैं । इससे आपके शास्त्रीय ज्ञान का लाभ, आदर्श गुरु भक्ति, शास्त्रप्रीति एवं शास्त्र की वफादारी का दर्शन सुज्ञ पाठकों को मिलता हैं ।
अन्त में इस हिन्दी रुपान्तर की प्रेरणा देने वाले विद्धान गणिवर्य श्री अशोक सागर जी के सद्प्रयासों के भी हम प्रभारी