SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परन्तु फिर उदयपुर जाने का निश्चित होने से वे दोनों ठाणा कपड़वंज से मोड़ासा, शामला जी, डूंगरपुर होकर केसरिया जी की यात्रा करके जेठ सुद में उदयपुर पूज्य श्री के पास आने का होने से अन्य स्थान पर चातुर्मात करने का टाल दिया । इसके अतिरिक्त पूज्य श्री को वहां समाचार मिले कि श्री वीतराग परमात्मा की भक्ति के सन्दर्भ में पूज्य श्री के सचोट प्रतिपादनों से जिन-पूजा की प्रमाणिकता ध्वनित होने से, उसी प्रकार गत चातुर्मास में विरुद्ध दलीलों का जो जोरदार तर्कबद्ध सामना किया उससे उदयपुर के स्थानकवासी जैन खलबला उठे थे । उनके बड़े विद्वान संत को चातुर्मास के लिए लाकर मूर्तिपूजा के खंडन का जोरदार प्रयत्न उठाया है । " प्रादि रहने पर भी पू. श्री गच्छाधिपति मूलचंद जी म. की निश्रा में टिका सके थे । उसके नमूने के रूप में यह प्रसंग है । जों रूकावटे प्राती या कर्तव्य मार्ग में कठिनाई आावे तब वे श्री अपने निश्रादाता पू. गच्छाधिपति के सम्पर्क में रहते थे । इस बात की प्रतीति प्राचीन संग्रहों में मिल आई है । पू. गच्छाधिपति श्री का अपना एक प्राचीन पत्र खूब स्पष्ट प्रकाश देता है । वह पत्र प्राचीन भाषा में है वैसा ही अक्षरसः यहाँ प्रस्तुत है :- पू. मूलचंद जी म. का पत्र श्री झवेर सागर जी म पर अहमदाबाद लिखनेवाले मुनि श्री मूलचंद जी म. श्री अहमदावाद लि. मुनि मूलचंद जी - सुख शांता वर्तित है । ११७
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy