SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "दुश्मन का दुश्मन मित्र की गरज पूरी करता है" कहावत के अनुसार ढूंढिया गण पूज्य श्री की शास्त्रीय देशना तथा तात्विक तथ्यों से अपने मत के धुंधले पड़ते के दहशत होते हुए भी तेरापंथीढियों के कट्टर विरोधी अतः अपने प्रतिस्पर्धी को छक्के छुड़ाने के लिए बनिया - शाही नीति के प्रमाण से पूज्य श्री के पास दोपहर के समय आकर दान या विरोधा बंवडर को शमित करने की प्रार्थना की । पूज्य श्री दूसरे दिन अक्षय तृतीया के प्रासंगिक व्याख्यान में अवसर्पिणी-काल के वर्तमान युग के श्रेयांस कुमार जो दान धर्म की प्रवृति की उस प्रसंग को उभार कर दान धर्म की विशद प्ररूपणा करके दान-दया के विरोधियों द्वारा उपजाये गये समस्त कूटतर्क का खंडन देकर आगमों के पाठों द्वारा दान-धर्म की स्थापना की तथा द्रव्य - दया, भाव- दया के स्वरुप एवं उसके अधिकारी कौन इसे ब्यौरेवार समझाया । शास्त्र दोपहर तेरापंथी श्रावक पूज्य श्री के पास आये, पाठ को प्रस्तुत करने लगे अतः पूज्य श्री ने प्रकट हुए शास्त्र पाठों के अर्थ की विकृति दर्शाकर उसके साथ के पाठों को दर्शाया । उससे प्रभावित होकर श्रावक ने पूछा कि - "हमारे संतों के साथ वार्तालाप श्राप करेंगे क्या ? ' पूज्य श्री ने कहा कि - " जिज्ञासुभाव से बात कोई भी हमसे कर सकता है बतंगड़बाजी और फिजूल की चर्चा से - हम दूर रहते हैं । ११५
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy