SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिला ।अपने श्री संध के अग्रगण्यों को पूज्य श्री ने इस बात की स्पष्ट जानकारी दी कि पन्द्रह दिन राह देखने पर भी पत्र का उत्तर नहीं आया और न ही उनका रूबरू आने की कोई भी बात की ध्वनि ही है । अत: व्याख्यान में "वह पुस्तक पूर्णतः खोटी है" ऐसी घोषणा कर पूज्य श्री वडनगर, उज्जैन, मक्षीजी, महीदपुर होकर आगर मुकाम पर चैत्री अोली की आराधना ठाठ से कराई। उस चैत्री अोली की अवधि में उदयपुर श्री संघ के प्रमुख आये और विनती की कि-"बावजी सा! आप झट उदयपुर पधारो । ढूढिया और आर्य समाजियों की पोल आपने खोल दी । कई लोगों को धर्माभिमुख बनाया । किन्तु अब ये तेरापंथी लोग दान-दया का विरोध का झंडा उठाया है । अभी उदयपुर से सुगनचंद जी, चम्पालाल जी आदि छः सात तेरापंथी संत और दस-पंद्रह सतियां पंचायती नोहरे में प्रवचन देकर उदयपुर में बतंगड़ मचा रहे हैं। आप महरबानी कर जल्दी पधारो।" आदि पूज्य श्री ने समय की जांच कर चैत्री ओली पूरी होते ही तत्काल उदयपुर जाने की भावना दर्शायो । उदयपुर श्री संघ के प्रतिनिधि प्रसन्न होकर गये । पूज्य श्री भी चैत्र को बीज विहार करके वैसाख सु. बीज के मंगल प्रभात में उदयपुर शहर में पधारे । श्री संघ ने भव्य स्वागत किया । ११४
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy