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बनाई । जिसे सुनकर सनातनी अग्रगण्यों को खूब प्रसन्नता हुई। इसके बाद जैन श्री संघ के प्रमुख व्यक्तियों के साथ विचार-विमर्श करके उदयपुर शहर की समस्त धार्मिक प्रजा के नाम पर छटावाद शैली में वृहदाकार पत्रिका प्रकाशित की । स्वामी दयानंद जी के क्रांति के नाम से स्वच्छन्दवाद की उत्तेजक तथा एकांगी शास्त्रीय परम्परा के साथ बिना मेल के विचारों के सामने जबरदस्त उहापोह मच गया तथा पूज्य श्री झवेर सागर जी म. को सर्वसारण के सामने बिठाकर उनकी प्रौढ़ विद्वता भरी तथा अकाट्य क्रमबद्ध तर्कों की परम्परा के बल पर थोड़े दिनों में प्रार्यं समाजियों को अपनी बात प्रकट करना भारी कर दिया ।
परिरणामस्वरुप कुछ चिड़े हुए आर्य समाजिकों ने चैलेन्ज कर शास्त्रार्थ का खुली सभा में आह्वान किया जिसे पूज्य श्री ने शहर की धार्मिक प्रजा समूह में खुले रूप में स्वीकार कर तथा स्थान का निर्णय करने लिए अग्रगण्य नागरिकों को प्रेरणा दी ।
राजमहल के आगे के खुले चौक में सनातनियों ने व्यवस्थित विचार कर उसके अनुसार श्रावण विद 3 के मंगल प्रभात में स्वामी जी श्री दयानन्दजी तथा उत्तम धुरंघर कर्मकाण्डी वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा घिरे पू. श्री झवेर सागर जी म. की विचार सभा प्रारम्भ हुई ।
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