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बीच में जैन श्री संघ के दो, सनातनियों के सात तथा आर्यं समाजियों के छः पंडित मिलकर पन्द्रह पंडित मध्यस्थल में बैठे दोनों तरफ की बातों को लिख रहे थे, तर्कों का बराबर स्पष्ट है या नहीं आदि लिख लेने के साथ ही बाद में से वितंडावाद न हो सके ऐसी सावधानी भी अंकित करते । प्रारम्भ पू श्री झवेर सागर जी म. श्री ने संसार में धर्म दर्शन तथा उसकी भेद रेखा जताने के साथ ही समस्त भारतीय दर्शन के तत्वदर्शन की भूमिकायें एक हैं । यह बात सचोट रूप से दर्शायी । " सनातनियों की मान्यता के आधारभूत वेदों-उपनिषदों के आधार पर मूर्ति पूजा यथार्थ है" इस बात का प्रतिपादन किया ।
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पश्चात् आर्य समाजी- स्वामीजी ने उनके स्पष्टता में भारतीय दर्शन अलग - अलग मतिकल्पना रूप है " सनातनियों में भी वेद की मान्यता है फिर भी उन पर पूर्ण श्रद्धा के साथ वैदिक विद्वान टिक नहीं सके" आदि जतलाकर मूर्तिपूजा की असारता के सम्बन्ध में तर्क प्रकट किये ।
पू. श्री झवेर सागर जी ने प्रत्येक विचारणीय बिन्दु से वेद-उपनिषद श्रुति स्मृति तथा व्यावहारिक तर्कों के आधार पर सचोट स्पष्टीकरण किये। इस प्रकार प्रथम दिवस दो घंटे चर्चा चलो । इस तरह तीन दिन चर्चा चलने पश्चात श्रार्य समाजी स्वामी जी इस चर्चा - विचारणा की तटस्थ
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