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पंडित जी ने भी भांति-भांति के चित्र-विचित्र तर्कों से मूर्तिपूजा को असारना तथा सनातनधर्मियों को कितनी ही मान्यताओं को खोखलेपने को प्रतिपादित किया। उदयपुर की धार्मिक प्रजा में जोरदार खलबलाहट मचा दा। जन श्री संघ के प्रागेवानों का सम्पर्क सावकर सनातनियों ने पू श्री झवेर सागर म. को विनती की
__ "केवल बुद्धि के बतंगड़रूप अनेक कुतर्को से भरपूर शब्दाडंबर वाले इन व्याख्यानों से मुग्ध जनता भ्रमित सो हो उठी है । आप तो वादकला के अठंग निष्णात है । रतलाम में आपने अपनी जो प्रतिभा दिखाई थी उसके भरोसे हम आपके पास आये हैं" प्रादि । पूज्य श्री ने कहा कि, “महानुभाव ! आप लोगों का कथन यथार्थ है । यह कलियुग की महिमा है कि वाद-दिवाद के जंजाल में सत्य को छिपाया जाता है ! भैया इस तरह कूट तर्कों के सहारे कभी असलियत को छिपाई नहीं जा सकती। फिर भी आप लोगों का हार्दिक प्रेम का महत्व समझकर मैं अपनी पूरी शक्तियों को इस बवंडर को हटाने हेतु लगाने को तैयार हूं।
यों कहकर खुले व्याख्यानों, प्रश्नोत्तरों, चर्चा, सभा इत्यादि के माध्यम से आर्य समाजी साहित्य के खोखलेपन उनके कूट तर्को,प्रतीत होते घटाटोप के पीछे रहने वाली निर्बलता आदि आम जनता के सामने रखने हेतु क्रमबद्ध योजना
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