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प्रदान को । परिणामस्वरुप प्रारंभ हुए श्री गोडी जी महाराज के देरासर के जीर्णोद्धार के कार्य को पूरा कराकर उदयपुर की ख्याति प्राप्त कांच जुडने को कला तथा सुन्दर पक्के रग की चित्रकला से गोड़ी जी का देरासर सुन्दर एवं दर्शनीय बनवाया तथा सागर शाखा के मुनिराजों के उपदेश से स्थापित प्राचीन ज्ञान भंडार के मकान की भी आवश्यक परिवर्तन दुरस्ती कराकर ज्ञान समृद्ध संग्रह को सुरक्षित कराया । लेखकों को बिठाकर प्राचीन प्रतों को नये सिरे से लिखवाकर ज्ञान-भंडार की समृद्धि में वर्धन किया।
इसके उपरान्त माघ सु. 10 के दिन सहस्त्रफणा श्री पार्श्वनाथ प्रभु के जिनालय के रंग मंडप में दोनों तरफ तीन तीन प्रतिमा जी का महोत्सव कराया। इस प्रसंग में पुण्यवान श्रावकों ने भावोल्लास से श्री गोड़ी जो तथा सहस्त्रफणा जी श्री पार्श्ववनाथ प्रभु के मुकुट कुण्डल इत्यादि स्वर्णाभूषण बनाकर प्रभुजी को अर्पित किया।
फाल्गुन चौमासे के प्रसंग में होली-धुलेण्डी के नाम से मिथ्यातत्वियों द्वारा प्रगाढ पाप के आचरण को कराने के तरीके व रिवाज छोड़ने के जोरदार उपदेश दिये । अनेक भाई बहिनों को लौकिक मिथ्यातत्व के फंदे से बचाया । इसके अतिरिक्त शाश्वत नवपद आराधना की चैत्री अोली के प्रसंग में विशेष प्रेरणा करके श्री नवपद जी की आराधना