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________________ सुनकर उजमणा के दर्शन कर प्रभु भक्ति का लाभ लिया । पूज्य श्री की देखरेख में जोधपुर, नागौर, पोकरण इत्यादि के जो लेखक काम करते थे उनके पास लिखवाकर तैयार की गई अनेक प्रतियों को इस उजमणे की अवधि में सेठाणी छोगाबाई ने पधराने का लाभ लिया। इसके उपरान्त आगम को लिखवाने के सम्बन्ध में अपनी भावना व्यक्त की। अोली जी के बाद पूज्य श्री ने गृहस्थों का ध्यान खींचकर सोना, चांदी तथा जवाहरात से भी अधिक मूल्यवान श्रुतज्ञान के धन को सुरक्षा के लिए, दीमक आदि जीव नष्ट न करें ऐसे सुन्दर सागवान के पट्टियों के डिब्बे बनवांकर लाल रंग से रंगवाकर सुन्दर बंधन वाले वस्त्रों में लपेट कर ज्ञान-भंडार को अधिक सुरक्षित बनाने के लिए कठोर परिश्रम उठाया। इस प्रकार अनेकानेक धर्मकार्यों में चातुर्मास सम्पूर्ण हुआ। इसके तत्काल पश्चात विहार को भावना होने पर भी श्रीगोड़ो जो देरासर का वि.सं.1936 वैसाख से प्रारंभ किया जीर्णोद्धार के काम की शिथिलता दूर करने, इसी प्रकार ज्ञान-भंडार को सुसमृद्ध बनाने के लिए अनेकों लेखकों को रोककर प्राचीन श्रुत-ग्रन्थों की प्रतियों को सुरक्षित करने हेतु नये सिरे से लिखवाने की प्रवृति के देख-रेख के अभाव में मंद होने की संभावना से पूज्य श्री ने उस कार्य को स्थिरता
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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