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उन पर्वाधिराज के दिनों में ही यथोत्तर बढ़ती कला की ध्यान प्रवृति के परिणामस्वरुप सेठ श्री इन्द्र चंदजी तातेड़ की विधवा पत्नि श्रीमती छोगा बाई ने श्री नवपद अोली की विधिपूर्वक आराधना की उजमरणा के संदर्भ में अष्टान्हिका महोत्सव के लिये श्री संघ के पास से स्वीकृति मांगी। श्री संघ ने भो धर्म कार्य को चढ़तो भावना के अनुरुप बहुत सम्मानपूर्वक इस सम्बन्ध में स्वीकृति प्रदान की।
सुश्राविका छोगाबाई ने पूज्य श्री की प्रेरणा प्राप्त कर पांच भारी तथा चार सादा इस प्रकार नो छोड़ का उजमणा उस सम्बन्धी ज्ञान-दर्शन चरित्र के विविध उपकरणों को यथायोग्य नो नो की संख्या में लाकर श्री गोड़ी जी महाराज के देरासर के पास उपासरा में रचनात्मक रूप में भव्यता से उजमणा संयोजित करके श्री नवपद जी की अोली की आराधना करने वालों को "उत्तर पारणा" कराकर के अपने स्वयं के व्यय से प्रांबिल की अोली कराई । इस बीच में श्री वीतराग प्रभु के गुणगान के साथ श्री जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव खूब ठाठ से सम्पन्न कराया।
इस प्रसंग में पत्रिका द्वारा पास गस के श्री संघों को भी श्री नवपदाराधना के लिए तथा महोत्सव में आने के लिए आमंत्रण दिये । पीछे के दिनों में आसपास के सैंकड़ों धर्मप्रेमो भावुकों ने आकर पूज्य श्री के व्याख्यान को