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________________ प्रभावशाली छाया समस्त उदयपुर में व्यापक रुप से प्रसा - रित हुई । प्रार्य समाजियों ने गंगेश्वरानंद जी नाम के अपने एक विद्वान सन्यासो को बाहर से बुलाकर शास्त्रार्थ को योजना बनाई । पूज्य श्री ने सनातनियों के वेद पारंगत अनेक धुरंधर पंडितों का सहकार पाकर वेद उपनिषद प्रादि के आधार पर आर्य समाज की मान्यताओं की असारता को प्रकट किया । इसमें प्रसंग-प्रसंग में जैन धर्म के सिद्धान्तों तत्वों तथा मान्यताओं की बेसमझी से विकृत रुप से श्री दयानन्द स्वामी कैसी मिश्रित बातें प्रकट की हैं । उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश तथां शास्त्र प्रमाणों से शैली से जताकर सर्व साधारण जनता के आर्य समाजियों की खोखली प्रचार नीति की कठिन पाश में से बचाकर जैन धर्मं का जय जयकार बरताया । पर्वोंधिराज की सुन्दर उल्लासभरी आराधना हुई । श्री कल्पसूत्र जो के वाचन के लिए उमगपूर्वक गजराज पर श्री कल्पसूत्र को पवराकर रथयात्रा, रात्रि जागरण इत्यादि कार्यक्रम के साथ अलौकिक धर्मोल्लास जैन श्री संघ में पवर्तित हुआ । भाद्रपद सु 1 जन्म वाचन के अधिक प्रसंग में पूजा श्रा की प्र ेरणा से सुन्दर चादी जड़ित कलात्मक चौदह स्वप्न उतरने की पुरातन पद्धति के धर्म प्रेमी जनता ने उल्लास से अपनाकर हजारों का चढ़ावा बोलकर हार्दिक भक्ति अनुराग प्रदर्शित किया । ६
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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