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________________ करने वालों को व्यवस्थित सुविधा मिलती रहे इस शुभ रूप से चैत्री-आसोज माह की अोली कराने का श्री संघ द्वारा आशय से सतत प्रस्ताव निश्चित किया। आज भी अोली आराधना सामुहिक रूप में उत्तम प्रकार से चालू है ही। इसके उपरन्त अब तो स्थायी रूप से वर्धमान तप आयंबील शाला स्थापित हो गया है जिसमें बारहों महीने अांबोल तप को सुन्दर व्यवस्था श्री सघ को तरफ से सम्पन्न होतो है । चैत्रो अोली पूरी होने के बाद पूज्य श्री भीलवाड़ा तरफ विहार की भावना से चैत्र विद में तैयारी करने लगे तब उदयपुर श्री संघ के प्रमुखों ने प्राकार विनती की कि “साहेब ! गत चातुर्मास में आर्य समाजियों ने जो खलबली मचाई थी, उनके पं गंगेश्वरानद जो आपकी विद्वता के सामने चुप बन गये थे। तर्कों की बौछार वे बरदाश्त नहीं कर सके थे। परन्तु "हारा जुआरी दूना खेले" कहावत के अनुसार उन लोगों ने बड़ी भारी तैयारी कर ली। देहली से धुरंधर विद्वान शास्त्रार्थ महारथी स्वामी सत्यानन्द जी को आग्रहपूर्वक बुलवाने का तय किया है । ऐसी स्थिति में आप यहां पधार जायें तो "धणी बिना खेत सूना कहावत को ज्यों वहां मिथ्यात्व का घोर अधेरा छा जाय ! अतः कृपा करो महा. राज । आपकों यह आगामी चौमासा यहां ही करना पड़ेगा।
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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