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कर डिब्बों, में अल्मारियों आदि में रखकर सम्पूर्ण ज्ञान भण्डार सुन्दर व्यवस्थित सूचि सहित बनाया । अनेक नवीन उपयोगो प्रतियाँ लेखकों के पास से लिखवाकर एकत्रित किये तथा अनेक प्राचीन ग्रंथों का संग्रह करके ज्ञान भण्डार को अधिक समृद्ध बनाने के लिए पूज्य श्री ने संघ का ध्यान आकर्षित किया।
चैत्र माह की शाश्वती अोली जी के दिनों में सामुदायिक श्री नवपदजी का आराधना के लिए पूज्य श्री द्वारा व्याख्यान में खूब प्रेरणा करने से अनेक प्राराधकों का विधि के साथ श्री नवपद की आराधना के लिए विचार हुआ । इस प्रसंग में शा हेम चंद जी नलवाया की तरफ से श्री गोड़ी जी महाराज के दहेरे अष्टान्हिका महोत्सव भी खूब ठाठ से शासन प्रभावना के साथ हुआ। जिससे श्री नवपद जी के चाहकों का बहुत उल्लास बढ़ा।
उसके बाद वैशाख-ज्येष्ठ दो महिने आसपास के प्रदेशों में घूमने की भावना थी, लेकिन नागोर, पोकरण, जोधपुर से बुलाये गये लेखकों के पास उनके हाथ से बनाये गए काश्मीरी पत्र पर पुराना अप्राप्य प्राचीन ग्रंथों चरित्रों इत्यादि लिखने की प्रवृति जोरदार चली । ऐसी-ऐसी बहुत सी प्रवृतियों के कारण पूज्य श्री ने उदयपुर स्थिरना की । अंत में चातुर्मास