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________________ 1 सामान्य संवेगी साधुओं के विहार अपनी सूझबूझ के प्रमाण से ज्ञान भण्डार की साज सम्हाल करते रहते थे । इसमें पू. श्री झवेर सागर जी म. के प्रौढ़ पुण्य प्रभाव प्रागमानुसारी शुद्ध देशना, निर्मलचरित्र तथा चातुर्मास की अनोखा धर्म जागृति श्रादि से श्री संघ के प्रमुखों को लगा कि सं. 1914 में पू श्री निधान सागरजीम. कहने के प्रमाण से गुजरात तरफ के सागर शाखा के विशिष्ट प्रभावक इन मुनिश्रेष्ठों का लाभ हमें मिला है तो इन पूज्य श्री को अपना ज्ञान भण्डार बताकर उसकी रक्षा वृद्धि के लिए आवश्यक मार्ग-दर्शन प्राप्त करें । ऐसा विचार कर श्री संघ के अग्रगण्य श्री किशनचद जी चपलोत आदि श्रावकों ने ज्ञान भण्डार पूज्य श्री को दिखाने के लिए माघ सु. 8 के व्याख्यान में विनती की। दोपहर के समय पूज्य श्री अपने पूर्व के गुरुग्रों के श्रुत ज्ञान को सुरक्षा के शुभ उद्देश्य से स्थापित ज्ञान भण्डार का भावपूर्वक निरीक्षरण किया । श्रावकों की अपनी सोमित मर्यादाओं के कारण ज्ञान के संरक्षण में खूब त्रुटियाँ जान में आई। उन्हे पूज्य श्रो - ढाई माह का समय देकर अधिकारी श्रावकों की सहायता से सम्पूर्ण ज्ञान भण्डार अथ से इति तक गांठों में बंधे, गोलाकार बंधे लपेटे हुए डिब्बों में, अलमारियों में रखे हुए की आद्योपीत सफाई कराई । पुराने पड़े हुए सड़ े हुए आदि को निकाल फेंके तथा नये रुप में उनको बस्तों में बांध कर लपेट ६३
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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