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________________ प्रभावक पू. मुनि श्री भाव सागर जी मा. पू. मुनि श्री नाण सागर जी म. पू. निधान सागर जी ने उस ज्ञान भण्डार में विवध प्राचीन हस्तलिखित ग्रागम ग्रांथों इत्यादि श्रुत ज्ञान के अनमोल ग्रन्थ अनेक स्थानों से एकत्रित करके सुसद्ध तथा मुoयवस्थित रुप में स्थापित किया । अन्तिम रूप में वि. सं. 1914 चातुर्मास में पू मुनि श्री निधान सागर जी म. श्री ने उदयपुर श्री संघ के धर्मनिष्ठ अग्रगण्य श्रावक शाह किशन चंद जी चपलोत आदि को बुलाकर ( भलामण ) सौंपी - "हमारे साधू लोग गुजरात की तरफ है वे इधर पधारे ऐसा भी नहीं लगता । मेरा शरीर अब थका है | अतः आप लोग हमारी परम्परा के साधु भगवन्तों ने ये जिन मन्दिर उपाश्रय एवम् ज्ञान भण्डार आदि जो धर्म स्थान बनवाये है, इन सबकी देखभाल धार्मिक दृष्टि एवं आत्म कल्याण बुद्धि से करते रहे । हमारी सागर परम्परा के योग्य अधिकारो साधु भविष्य में इधर पधारे तो उनकी देखरेख में नहीं तो जो भो सुविदित - गीतार्थ साधु भगवंत पधारे उनकी देखरेख में किसी तरह इन धर्म स्थानों की प्रशातना न हो इस तरह देखभाल करते रहना । इसमें प्रमादशील न बनना आदि इस ज्ञान भण्डार की देख रेख श्री किशन चन्द्र जी चपलोत इत्यादि श्री संघ के अग्रगण्य श्रावक रखते थे । सागर शाखा के या अन्य शाखा के कोई प्रभावशाली या ६२
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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